Home > Work > साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
1 " सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। "
― Dushyant Kumar , साये में धूप [Saaye mein Dhoop]
2 " मरना लगा रहेगा यहाँ जी तो लीजिए "
3 " एक जंगल है तेरी आँखों में, मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ। तू किसी रेल-सी गुज़रती है, मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ। "
4 " आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देखघर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआआज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरहयह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझेकट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस हैरोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुईराख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख. "
5 " रह—रह आँखों में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरीआगे और बढ़ें तो शायद दृश्य सुहाने आएँगेमेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाताहम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएँगे "
6 " आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,घ्रर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई, राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख। "
7 " एक खँडहर के हृदय-सी,एक जंगली फूल-सीआदमी की पीर गूँगी ही सही, गाती तो है "